बुधवार, 19 मई 2010

ताड़पोश .. ताड़पोश.. और उस्ताजी पूजा

दाउदनगर(औरंगाबाद) ताड़ी की बहार आ गई है। जगह जगह ताड़ीखाने गुलजार होने लगे है। इस मौसम में घनी आबादी के बीच लगे ताड़ वृक्षों पर चढ़ते हुए पासी हांक लगाता है- ताड़पोश.. ताड़पोश..। दरअसल विनोद चौधरी के अनुसार यह स्त्री का मान रखने की कोशिश है। पासी जब ताड़ के पेड़ पर चढ़ते है तो वह इतनी ऊंचाई पर होते है कि समीप के दर्जनों घरों की छतें और आंगन उन्हे स्पष्ट नजर आते है। महिलाओं को सचेत करने के लिए हांक लगाया जाता है। ताड़ी बेचने की धंधे की शुरूआत उस्ताजी पूजा से ही होती है। अब इस पूजा की परंपरा कब से है, कोई नहीं जानता लेकिन अमल में अब भी है। हर चौधरी जो ताड़ी बेचने का धंधा करता है ताड़ी उतारने का काम शुरू करने के पहले सामूहिक पूजा में शामिल होता है। दाउदनगर की परंपरा में शाकाहार पूजा है जबकि देहाती क्षेत्रों में यह पूजा मांसाहारी होती है। लोग खस्सी काटते है और खाते पीते है। यहां शुद्ध दूध का खीर वह भी बिना चीनी या गुड़ का बनता है। गुड़ की मिठाई चढ़ाई जाती है और साथ में ताड़ी दारू इष्टदेव के नाम पर जमीन पर गिराया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से इष्टदेव खुश होते है और ताड़ के पेड़ से गिरने पर चौधरी को नुकसान कम होता है। इलाके में यह मान्यता है कि ताड़ के पेड़ से गिरते वक्त चौधरी के कमर में खोंसा हुआ हसुली स्वत: पहले गिर जाता है ताकि उससे चौधरी की जान को खतरा न हो। यह हसुली काफी तेज धार वाला होता है। इतना तेज धार का दूसरा हथियार बाजार में नहीं मिलता। फिलहाल पूजा पाठ की परंपरा के बाद अपने परंपरागत पेशे में यह चौधरी या पासी समाज उतरता है और अपना आय शुरू करता है।

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